कवि के मन मे रहता है एक कोना घर के सबसे पीछे अँधेरे और उपेक्षित तहखाने की तरह जहाँ वह झाँक लेता है खिड़कियों से कभी मोमबत्ती की रोशनी जलाकर अक्सर फेंक देता है अनुपयोगी सामान बीनकर कविता से और जीवन से जिसका रोशनी मे आना बना सकता है उसे कमजोर वो कई सालों से नहीं juta पाया है हिम्मत घुसने को इस सीलन भरे तहखाने मे कुछ उपयोगी वस्तुए छूट गई है बहुत पहले या फेंक दिया था, आज खोजना है उसे जैसे खो जाती है कभी कोई सूई किसी रुई के ढ़ेर मे जिसके दरवाजों की चरमराहट से उड़ जाती है मुंडेर पर बैठी चिड़िया दुबक जाते है भीतर कई चेहरे अंधेरे मे जहाँ प्रवेश करना कवि का किसी वर्जित दुनिया मे जाना है और खींच लाना है तमाम अनसुलझे रहस्य जो दर्ज है मेज पर रखी फटी डायरी मे बीच बीच मे मुडे पन्नो के साथ मन के इस कोने मे कभी करता है पुताई दीवारो की बचाने को अपनी खोई पुरानी यादों को जिसे नीम अंधेरे उठकर टटोलता है और निकलता है कुछ मरहम कोई पट्टी और दवा उसमे पड़ी है एक पुरानी डायरी के फटी पन्ने जिसमें छूट गई है अधूरी कविताएं और पुरानी पर्श मे रखा है एक पासपोर्ट फोटो जो अक्सर जीवंत हो जाती है प्
तुमसे मिली थी पहले भी कई बार और तुमने औपचारिकता वश कई बार पूछा था यूँ ही -सब ठीक? मैंने सिर हिलाया था कई बार हाँ में सब ठीक करने की सहमति में और मन नकार जाता था -सब कुछ ठीक कहाँ? कितनी बार दिन में चलती रही बिना ठहरे जिसे भटकना कह सकते है और रात मुँह फुलाए बैठी रही मेरी ओर पीठ किये जिसे शायद रूठना कह सकते है कितनी बार दरखतों से झाँक लेते है फटे हुए बादल और सारे सौन्दर्यबोध को झोंक देती हूँ सब कुछ ठीक होने के बहाने के बीच में न जाने कितनी बार एक चेहरा मेरे दुःख का हिस्सेदार रहा और वो मुझे ठीक से जानता भी नहीं था उससे मुझे कई बार शिकायते रहीं ये जानते हुए भी कि हर चेहरे पर नहीं लिखा जा सकता है भरोसा और हर आदमी नहीं जान सकता है सब ठीक है " बोले जाने का उतार चढाव वो नहीं माप सकता शब्द की गहराई को आज फिर मै तुमसे मिली कई बार की तरह तुमने पूछा -सब ठीक? कई बार की तरह मैंने भी सिर हिलाया सब कुछ ठीक है। और बहुत जोर से हँसी ठहाके के साथ भीतर कुछ खटाक से टूटा मेरे कानो ने भी नहीं सुनी कोई आवाज़ तुम्हारी तरह लेकिन दिन और रात को जरूर महसूस हुआ और नदी को भी अगल